उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को देश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज का राजनीतिक माहौल भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं है। उन्होंने कहा कि आज के समय में राजनीति का माहौल और उसका तापमान, दोनों ही हमारे लोकतंत्र और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं हैं। यह हमारी हजारों साल पुरानी संस्कृति से भी मेल नहीं खाता है। राजनीति में आप अलग-अलग दलों में हो सकते हैं और इसमें भी बदलाव होता रहता है — और बड़ा बदलाव होता है। सत्ता पक्ष प्रतिपक्ष में जाता रहता है, प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष में आता रहता है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि दुश्मनी हो जाए, दरार हो जाए। दुश्मन हमारे सीमापार हो सकते हैं, देश में हमारा कोई दुश्मन नहीं हो सकता।
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जगदीप धनखड़ ने कहा कि राजनीति का इतना तापमान असहनीय हो रहा है। बेलगाम होकर हम वक्तव्य जारी कर देते हैं। उन्होंने कहा कि मेरा सभी से आग्रह रहेगा कि विधान मंडलों को सर्वोच्च आचरण करना पड़ेगा। आज का परिदृश्य जब देखते हैं तो बड़ी चिंता होती है, कि प्रजातांत्रिक मंदिर में आज किस प्रकार का कृत्य हो रहा है। चिंता इस बात की है कि यदि यह प्रजातांत्रिक मंदिर में रहा, तो उस मंदिर के अंदर कोई पूजा करने नहीं आएगा — लोग दूसरी पूजा का स्थान देखेंगे। और यह प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है। इस कसौटी पर खरे हम तभी उतर सकते हैं, जब सार्वजनिक दिमाग में यह बात लाई जाए — और आज के दिन पूर्व विधायकों का इसमें बहुत महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब हम देश के बाहर जाते हैं तो ना पक्ष होता है नाप्रतिपक्ष होता है, हमारे सामने भारतवर्ष होता है! यह अब दिखा दिया गया। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर, दुनिया के अनेक कोनों में संसद सदस्यों का जाना, पूर्व राजनयिकों का जाना एक बहुत बड़ा कदम है। यह कदम है कि हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है, राष्ट्रहित हमारा धर्म है, भारतीयता हमारी पहचान है। उन्होंने कहा कि जहां भारत का मुद्दा उठेगा हम विभाजित नहीं हैं। हमारे राजनीतिक मनभेद नहीं हैं, हमारे राजनीतिक मतभेद हैं पर वो देश के अंदर हैं। कई बार हम आवेश में आकर प्रश्न उठा देते हैं जब चोट मुझे नहीं लगेगी तो मैं कहूँगा लड़ते रहो, लड़ाई जारी रखो। यह अखबार में पढ़ने की बातें नहीं हैं। बड़ा कष्ट होता है, अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट लगती है।
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उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि भारत आज से 11 साल पहले कहाँ था? यह राजनीतिक विषय नहीं है, हर कालखंड में देश का विकास हुआ है। हर कालखंड में महारथ हासिल किया गया है, पर जब इस कालखंड की बात करते हैं तो इसका अर्थ कदापि नहीं निकाला जाए कि किसी और कालखंड से तुलना कर रहे हैं। मैं दुनिया से तुलना कर रहा हूँ और दुनिया से इसलिए कर रहा हूँ कि जो भारत पहले दुनिया की 5 fragile economies में से एक था, आज वह दुनिया की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक है। आज दुनिया कहती है कि पिछले दशक में अर्थव्यवस्था के हिसाब से भारत ने जो प्रगति की है वह किसी और बड़े देश ने नहीं की है।
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