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पंजाब में अकाली दल का कमबैक या सियासी चालाकी:AAP की 2027 की राह कितनी आसान; कांग्रेस कहां चूकी, अमृतपाल की पार्टी का क्या होगा

पंजाब की तरनतारन सीट पर आम आदमी पार्टी (AAP) ने फिर कब्जा कर लिया। 2022 में भी इस सीट पर AAP के कश्मीर सोहल जीते थे। सत्ता के एज के हिसाब से AAP की जीत लगभग तय ही थी। मगर, इसकी बड़ी वजह अकाली दल से लाए कैंडिडेट हरमीत संधू भी रहे, जिनका क्षेत्र में खुद का भी रसूख है। वहीं, इस रिजल्ट में जो सबसे चौंकाने वाला पहलू रहा, वह ये कि अकाली दल कैंडिडेट ने पहले 3 राउंड में बढ़त बनाई और रिजल्ट में दूसरे नंबर रहा। इसे अकाली दल की सियासी चालाकी भी माना जा रहा है क्योंकि उन्होंने हरमीत संधू के AAP में जाने पर इलाके में पहले से जनाधार वाली सुखविंदर कौर रंधावा को कैंडिडेट बना लिया। वहीं खुद को 2027 में AAP का विकल्प बता रही कांग्रेस न केवल चौथे नंबर पर रही बल्कि उसकी जमानत तक जब्त हो गई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या 2027 में AAP का मुकाबला अकाली दल से होगा? क्या कांग्रेस अगले चुनाव में भी इतनी ही फिसड्‌डी साबित होगी? क्या इस जीत से AAP को दोबारा सरकार में वापसी का भरोसा कर लेना चाहिए? खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल से लोगों का मोहभंग हो गया?, 5वें नंबर पर रहने वाली भाजपा जमानत जब्त कराने के बाद क्या 2027 में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर सकती है। इस रिपोर्ट के सभी सवालों के जवाब पढ़िए.. सवाल: इस उपचुनाव की जीत क्या AAP को 2027 में सत्ता में वापस लाएगी?
जवाब: 2022 में 117 में से 92 सीटें जीतने वाली AAP ने उसके बाद हुए 6 उपचुनाव में से 5 में जीत हासिल की। छठी बरनाला सीट वह बगावत की वजह से हारे। तरनतारन उपचुनाव में AAP की जीत जरूर हुई लेकिन उसे शुरुआत में अकाली दल से मुकाबला झेलना पड़ा। AAP का जो कैंडिडेट हरमीत संधू जीता, वह भी एक बार निर्दलीय व 2 बार अकाली दल से विधायक रह चुके थे। सत्ता के एज के साथ उनके पर्सनल वोट बैंक का उन्हें फायदा मिला। ऐसे में 2027 में 2022 जैसी लैंडस्लाइड विक्ट्री नजर नहीं आती। हालांकि AAP के पास अभी महिलाओं को हर महीने 1000 रुपए देने वाली ट्रंपकार्ड स्कीम बाकी है। जो 2026 में चुनाव से पहले शुरू होगी। AAP को अगले चुनाव में इसका सीधा फायदा जरूर मिलेगा। इसके अलावा हर घर को 300 यूनिट बिजली की स्कीम भी हर उपचुनाव में AAP को फायदा पहुंचाती दिख रही है। सवाल: क्या अकाली दल 2027 में मजबूत चुनौती बनेगा?
जवाब: 2007 से 2017 तक अकाली दल ने भाजपा के साथ मिलकर 10 साल सरकार चलाई। 2017 के चुनाव में अकाली दल 117 में से सिर्फ 18 और भाजपा 3 ही सीटें जीत सकी। 2022 में तो हालत और भी बदतर हुई। अकाली दल सिर्फ 3 सीटों तक सिमट गया। भाजपा 2 सीटों तक सिमट गई। यह चुनाव दोनों ने अलग-अलग लड़ा था। इसके बाद हुए 6 उपचुनाव में 5 में अकाली दल का उम्मीदवार तीसरे या चौथे नंबर पर रहा। तरनतारन उपचुनाव में अकाली दल ने सबको चौंका दिया। शुरुआत के 3 राउंड के रुझान में तो अकाली कैंडिडेट सुखविंदर रंधावा ने लीड किया और आखिर तक दूसरे नंबर पर AAP को टक्कर दी। इससे यह भी कयास लगाए जा रहे हैं क्या लोगों की अकाली दल के प्रति बेअदबी और डेरा मुखी राम रहीम को माफी की नाराजगी दूर हो गई?। दूसरे नंबर पर आने से यह बिल्कुल खत्म हो गई, ऐसा तो नहीं लगता लेकिन इस पंथक सीट पर इसका असर कुछ कम दिखा है। हालांकि इसके पीछे अकाली दल का कैंडिडेट सिलेक्शन पर भी ध्यान देना होगा। सुखविंदर कौर रंधावा तरनतारन में आजाद ग्रुप की अगुआई करती हैं, जिसका पहले से अपना अच्छा जनाधार है। फिर भी नंबर टू आना अकाली दल के लिए संजीवनी से कम नहीं, वह इसे 2027 में भुना सकती है। हालांकि अकाली दल के लिए यह मैसेज भी है कि जितने अकाली दल बनेंगे, इसका नुकसान उसी को होगा। यहां अकाली उम्मीदवार को 30,558 और अकाली दल–वारिस पंजाब दे के मनदीप खालसा को 19,620 वोट मिले। अगर इन दोनों को मिला लें तो 50178 जोड़ बनता है। इसके उलट AAP के कैंडिडेट को 42,649 वोट मिले। अगर दूसरा अकाली दल न लड़ता तो ये वोट भी अकाली दल को मिलने की उम्मीद जताई जा रही है, ऐसे में अकाली दल यहां जीत भी सकता था। 2027 में जीत के लिए अकाली दल के सामने बाकी अकाली दलों को अपने साथ जोड़ने की बड़ी चुनौती है ताकि वोटों के बंटवारे को रोक सकें। शहरी क्षेत्रों में अकाली दल को भाजपा की मदद की जरूरत पड़ सकती है। सवाल: कांग्रेस की जमानत जब्त हुई, क्या 2027 में भी ऐसी हालत होगी?।
जवाब: 2022 में जब AAP की लैंडस्लाइड विक्ट्री हुई तो भी कांग्रेस 18 सीटें जीतकर प्रमुख विपक्षी दल बनी। इसके बाद के 6 उपचुनाव में एक सीट बरनाला कांग्रेस ने जीती। बाकी सीटों पर वह नंबर टू रही। ऐसे में कांग्रेस AAP के मुकाबले विकल्प जरूर नजर आती है लेकिन अगर कुछ बातों पर पार्टी ने ध्यान न दिया तो 2027 में उनके लिए मुश्किल हो सकती है। कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल गुटबाजी और नेताओं का बड़बोलापन है। अभी पंजाब कांग्रेस प्रधान राजा वड़िंग अलग नजर आते हैं। विधायक दल नेता प्रताप सिंह बाजवा और पूर्व सीएम व जालंधर सांसद चरणजीत चन्नी की राह अलग–अलग नजर आती है। इस चुनाव से सबसे बड़े सवाल तो प्रधान राजा वड़िंग पर ही हैं। पार्टी को अनुशासन में रखने की ड्यूटी प्रधान होने के नाते वड़िंग की है लेकिन उनके ही बयान व हरकतों ने पार्टी को चौथे नंबर पर ला दिया। तरनतारन के चुनाव प्रचार में खालिस्तान-हिंदुस्तान से लेकर पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री स्व. बूटा सिंह को अपशब्द और सिख बच्चों के केशों से मजाक करने से वोटरों में गलत मैसेज गया। जिससे एक तरफ दलित वोटर नाराज हुए तो दूसरी तरफ सिख गुरुओं के दिए ककारों की बेअदबी को लेकर सिख वोटर नाराज हुए और नतीजा ये हुआ कि तरनतारन में कांग्रेस के उम्मीदवार करणबीर बुर्ज जमानत ही जब्त करा बैठे। सवाल: खालिस्तान समर्थक सांसद अमृतपाल की पार्टी को क्या यह बड़ा झटका है?
जवाब: ऐसा कहा जा सकता है, इसकी वजह ये है कि जिस खडूर साहिब सीट से अमृतपाल जेल में रहते हुए सांसद चुने गए, उसी के अधीन आती तरनतारन सीट पर उनकी पार्टी अकाली दल-वारिस पंजाब दे पहले-दूसरे नंबर की फाइट में भी नजर नहीं आई। कांग्रेस जरूर पिछड़ी लेकिन उसकी वजह अमृतपाल की पार्टी से ज्यादा कांग्रेस की गलतियां रहीं। 2027 में पूरे राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही अमृतपाल की पार्टी के लिए यह नतीजा अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि उनके उम्मीदवार मनदीप खालसा ग्राउंड पर रहकर ही चुनाव लड़ रहे थे। उनके जीतने के बाद ऐसा भी नहीं था कि अमृतपाल की तरह जेल में होने की वजह से वह लोगों के काम नहीं करा पाएंगे। फिर भी लोगों ने भरोसा नहीं जताया। ऐसे में यह क्लियर है कि सिर्फ खालिस्तान के समर्थन से अमृतपाल की पार्टी को पंजाब की सत्ता नहीं मिलेगी। इसके साथ उसे लोकल मुद्दों से जुड़ाव के साथ जनता को यह भी भरोसा दिलाना होगा कि वह जीतने पर ट्रेडिशनल पॉलिटिशियन की तरह काम करेंगे। जिसकी उनके पूरे प्रचार में कमी दिखी। सवाल: भाजपा की जमानत जब्त हुई, 5वें नंबर पर रही, 2027 के लिए इसके क्या मायने हैं?
जवाब: पंजाब के लिहाज से देखें तो अकेले दम पर भाजपा सियासी तौर पर बहुत मजबूत नजर नहीं आती। 2017 के चुनाव में 3 और 2022 के चुनाव में भाजपा सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई। भाजपा का कोर वोट बैंक शहरी है, फिर भी उन्होंने सिख बाहुल्य होने के बावजूद तरनतारन में पूरा दमखम दिखाया। हरियाणा और दिल्ली की CM को बुलाकर प्रचार तक कराया। मगर, रिजल्ट में इसका असर नहीं दिखा। भाजपा 5वें नंबर पर रहने के साथ उसकी जमानत भी जब्त हो गई। हालांकि इस सीट पर भाजपा को खुद भी कोई बड़ी उम्मीद नहीं थी। हुआ भी बिल्कुल ठीक वैसा ही, लेकिन 2020–21 के किसान आंदोलन के बाद तरनतारन ऐसा चुनाव रहा, जहां उन्हें किसी तरह का विरोध नहीं झेलना पड़ा। भाजपा ने खुलकर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार किया। फिर भी यह स्पष्ट नजर आता है कि पंजाब में अकेले दम पर भाजपा का कुछ बड़ा परिणाम लाना किसी चमत्कार की तरह ही होगा।

​देश | दैनिक भास्कर

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