मशहूर गायक और संगीतकार कैलाश खेर ने मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री पर तंज कसते हुए कहा कि यहां “कम ही सार्थक फिल्में बनती हैं और ज्यादातर फिल्में ‘फालतू और टाइमपास’ होती हैं।”
रजत शर्मा के मशहूर शो ‘आप की अदालत’ में आज रात 10 बजे इंडिया टीवी पर प्रसारित होने वाले एपिसोड में कैलाश खेर ने कहा, ‘मैं ये बोलता हूं साहब, वो बुरी दुनिया नहीं, बहुत अच्छी दुनिया है। वो भी अच्छा मेहनत कर रहे हैं। समाज को दर्पण दिखा रहे हैं। लेकिन मीनिंगफुल जो चीजें हैं, क्योंकि हमने फिल्में कभी देखी नहीं बचपन से, मीनिंगफुल फिल्में, रजत जी, बहुत कम बनती हैं। टाइमपास और फालतू टाइप की चीजें ज्यादा होती हैं, तो ऐसे में मन करता है कि नहीं, फोक म्यूजिक को लाया जाए। फोक म्यूजिक कैसे आएगा? नॉन-फिल्म म्यूजिक से आएगा। आज जब गाने, जिस वक्त ‘कांटा लगा’ और ‘चमन खिलता है’ जैसे गानों के रीमिक्स चल रहे थे और अलग-अलग शब्दों के अलग-अलग भाव के गाने बन रहे थे, बहुत ही सतही, अचानक उस वक्त आए, ‘तुझे जीत, जीत हार, ये प्राण, प्राण वायु। ऐसे में निहारूं, तेरी आरती उतारूं। तेरे नाम से जुड़े हैं सारे नाते।”
जब रजत शर्मा ने पूछा कि क्या ये एहसान फरामोशी नहीं है कि इतना कुछ आपको फिल्म इंडस्ट्री ने दिया और आप कह रहे हैं कि चाट मसाला है, तो कैलाश खेर ने जवाब दिया, ‘मैं मुंबई गया था तहजीब वाला संगीत दिखाने के लिए एल्बम बनाने। फिल्मों में संगीत कई चीजों का मिश्रण होता है। मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं कि मुझे फिल्मों में गाने का मौका मिला। मेरे जो गाने थे, वो हिट हुए, मेरा एक गाना 100 गानों से बेहतर साबित हुआ। खुशकिस्मती से मेरे लिए अच्छे, सार्थक और प्रेरणादायक गाने लिखे गए। फिर मुझे ज्यादातर भगवान शिव की स्तुति में गाने मिलने लगे। साउथ में तेलुगु, कन्नड़, तमिल में मेरे 100 में से करीब 60 गाने भगवान शिव की स्तुति में थे। ये कुदरती बात है। हमारे भारत में एक ऐसा संगीत है जो घर-घर में, गांव-गांव में सुना, गाया और समझा जाता रहा है, जिसको हम फोक म्यूजिक कहते हैं। लोक संगीत, जो धीरे-धीरे मिटता जा रहा है। फैशन जो है, ये फिल्में कब से आई हैं? रजत जी, कुल 100-125 साल से। फिल्मों से पहले भी तो भारत में कुछ था ना। पहले भी संगीत था और मैं कहता हूं, जितने भी संगीत के प्रकार हमारे साहब बने बैठे हैं, जो शास्त्रीय संगीत भी हैं, वो भी फोक से आया है, हमारे लोक संगीत से आया है। लोक संगीत की विशेषता क्या है? वो सिर्फ मनोरंजन नहीं होता।’
उन्होंने आगे कहा, ‘अब अगर फिल्मों की ही मार्केटिंग हो और फिल्मों के ही ऊपर हम डिपेंड हो जाएं, तो हमारी संस्कृति देख लीजिए, कहां चली जाएगी। धीरे-धीरे हमें प्रिजर्व करना पड़ेगा। असली तत्व, असली सत्व और जो हमारे कृत्य हैं, जो हमारे सत्य हैं, वही अमर होते हैं, वही बड़े होते हैं। मनुष्य चले जाते हैं। फिल्में तो आज आईं और कल गईं। कितनी फिल्मों के ऐसे-ऐसे किस्से हैं साहब कि जिन फिल्मी परिवारों के बड़े-बड़े नाम होते थे, अब वहां मक्खी उड़ रही है उन परिवारों पर। तो ऐसे में इसका मतलब कितनी सतही वो दुनिया होगी।’
कैलाश खेर ने बताया कि कैसे उन्होंने निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर गीत-संगीत की दुनिया में सनसनी बनने तक का सफर तय किया। अब तक वे 21 भाषाओं में 2,000 से ज्यादा गाने गा चुके हैं। एक पुरोहित के बेटे कैलाश खेर ने घर छोड़ा और दर्जी का काम, प्रिंटिंग प्रेस में काम, सीए के सहायक के रूप में काम, और हैम्बर्ग में हस्तशिल्प के निर्यात जैसे कई काम किए। दिल्ली में छोटे-मोटे काम करने के बाद वे ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन आश्रम गए, जहां उन्होंने पुरोहित बनने की शिक्षा ली। फिर वे मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने पहुंचे।
पहला जिंगल
कैलाश खेर ने अपने पहले जिंगल का किस्सा सुनाया, ‘मुझे नक्षत्र डायमंड्स के लिए पहला जिंगल करने का फोन आया। मैं महालक्ष्मी के फेमस स्टूडियोज गया, मुझे डबिंग रूम में भेजा गया और 40 सेकंड का कमर्शियल जिंगल गाने को कहा गया, बिना किसी रिहर्सल या प्लानिंग के। तो मैं अचानक पहले से थोड़ा सा, मतलब नर्वस टाइप की तो बीमारी थी नहीं कि इतने धक्के खा लिए कि पता ही नहीं नर्वस होता क्या है? लेकिन यह कुछ अलग टाइप की चीज थी, तो नर्वस के ऊपर की कोई स्थिति बनी कि अब क्या होगा यार, कुछ सिखाया नहीं, कुछ बताया नहीं, कोई बैकग्राउंड नहीं दी। तो अचानक मैंने भगवान का नाम लिया और सीधा शुरू। तना तना… धूम तना… मैंने यह किया, तो उन्होंने अचानक अंदर से कंट्रोल रूम से बोला, “Yeah, come out.” मुझे लगा सर, बात बनी नहीं है। कुछ अनाड़ीपन का काम हुआ है, तो दरवाजा खुलते ही भाग लेता हूं। अंदर जाऊंगा नहीं, उनको हैरेसमेंट होगी। हमको तो पता ही नहीं। हम तो बेशर्मों के पार हैं। तो सर, जैसे ही हमने दरवाजा खोला निकलने को डबिंग रूम से, तो दो लोग खड़े थे। “Come, come.” तो वे अंदर ले गए हमें। जैसे ही अंदर गए, तो अचानक जो सीरियस लोग बैठे थे, उनके एकदम से एक्सप्रेशन थोड़े शुरू हुए। “Wow, man, what a voice, man, what a personality, your voice is amazing.” अचानक तो मैं मन ही मन सोचूं, थोड़ी देर बाद मारेंगे। यह सच है या कुछ चोटें इतनी खा रखी थीं कि सच पर भी विश्वास उस वक्त तक नहीं हुआ। फिर उन्होंने जब बोला कि, ‘अपना इनवॉइस भेज देना,’ तो पहला इनवॉइस 5 हज़ार का था, वह अभी तक मिला नहीं। ऐसे जिंगल्स की शुरुआत हुई, सर।
रजत शर्मा: तो एक ही जिंगल में काम चल गया कि कुछ और भी गाने पड़े?
कैलाश खेर: फिर एक जिंगल के बाद, सर, हमें ढेर सारे जिंगल्स मिलने लगे। एक जिंगल हमारा ऐसा हुआ कि वह विदिन द इंडस्ट्री जो लोग क्रिएटिव लोग हैं, वह जिक्र करने लगते हैं आपस में, “Yeah, this is the new voice, man, something very fresh, very raw, check this out.” तो यह सब होता था। तो जैसे ही रजत जी, इंग्लिश में मेरी तारीफ होती थी, मैं चुपचाप ऐसे सिम्पल सा बैठा होता था, जैसे इंग्लिश में तारीफ की, तो पांच का मैंने आठ, वॉइस इनवॉइस 8 का, और 8000 का इनवॉइस हो गया। वह भी मेरा भुन गया। पहला चेक नहीं मिला था 5 का, लेकिन 8 का मिल गया। अचानक 15 दिन में फिर एक मिल गया। जिंगल अच्छा और अच्छे-अच्छे ब्रांड। धीरे-धीरे वह बाहर भी आने लगे, तो टीवी पर जब चले, तो लोग हमें फोन करने लगे। एक-दो तो जानकार थे, ‘यार, तेरी आवाज़ सुनी थी और तेरा तो भाई काम हो गया।’ इसका मतलब यह तो मुंबई में काम मिलने लगा। तो ऐसे शुरू हुई और एक उन ही दिनों, 8-9 महीने हमने पीजी में रहते हुए हो गया था। फिर बॉम्बे डाइंग के जिंगल के लिए मुझे 20,000 रुपये मिले। इसके बाद मैं पीजी से एक बीएचके किराए के फ्लैट में शिफ्ट हुआ।’
नरेंद्र मोदी की तारीफ
2017 में पद्मश्री से सम्मानित कैलाश खेर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा, ‘मोदीजी बहुत प्यारे लगते हैं। बहुत ही गहरी आत्मा है। इससे पहले कभी भी हमारे सनातन को, हमारे संतों को, हमारे महापुरुषों को इतना मान-सम्मान, विशेषकर महात्माओं को, कम मिला है। और अब हमारे तीर्थस्थलों को और हमारी संस्कृति के जो भी चिन्ह हैं, उनको थोड़ा मान मिल रहा है।’
रजत शर्मा: आपने ऑपरेशन सिंदूर के बाद एक गाना बनाया?
कैलाश खेर: हमारी सेना का उसमें शौर्य, हमारे भारतवासियों का गौरव, वैभव और जितने भी हमारे देश की जो ग्लोरी है, उसको हमने गाया है और ये गाने की जरूरत है।
रजत शर्मा: और दिल्ली विधानसभा का चुनाव जब बीजेपी जीती थी, तब भी आपने गाना बना दिया?
कैलाश खेर: जी, क्या हुआ है कि कुछ मोमेंट्स ऐसे होते हैं, जब आप दिल्ली के होते हैं और दिल्ली की दुर्दशा भी देखी। दिल्ली की अच्छी दशा भी देखी, तो कुछ बातें होती हैं। जब हृदय से निकलती हैं और कलाकार का यह कर्तव्य है कि वो सिर्फ एक ही तरह का कुछ न करें। समसामयिक विषयों पर अपने विचार बताएं और कलाकार का मतलब है सिर्फ मनोरंजन करना नहीं, बल्कि जगाना, अलख जगाना।
रजत शर्मा: 2011 में आप अरविंद केजरीवाल की तारीफ में गा रहे थे?
कैलाश खेर: उनकी तारीफ में नहीं गाया था साहब, वो अन्ना हजारे जी के लिए गाया था हमने और वो हमारे विचार अभी भी हैं, “अंबर तक यही नाद गूंजेगा।” यह हमने अन्ना हजारे जी के लिए गाया था। तब हम जानते भी नहीं थे, यह जो नाम लिया आपने, इनको जानते भी नहीं थे।
रजत शर्मा: लेकिन 2017 में आपने कमाल किया। 2017 में उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहे थे, तो आपने एक गाना गाया मायावती जी के लिए, जिसमें उनको साक्षात देवी बताया। दूसरा गाया अखिलेश जी के लिए, जिसमें उनको “धड़क-धड़क अखिलेश” बताया। और तीसरा योगी आदित्यनाथ के लिए, “गुंडाराज से मुक्ति दिलाने वाले योगी।” कमल भी खिला दिया, साइकिल भी चला दी और हाथी भी चढ़ गए?
कैलाश खेर: कांग्रेस का भी गाया था सर। क्या बात है। तो चारों के गाए थे। इत्तफाक से क्या हुआ है, यह रिलीज़ एक टाइम पर हुए, गाए अलग-अलग समय पर हैं। तो यह जो पहला नाम आपने लिया, उनका हमने शायद हमारे करियर के बिगिनिंग में ही गा लिया था। तो उस वक्त तो हमको हर मनुष्य, देवी और देवता ही नज़र आता था। बिगिनिंग तो ऐसी ही होती है। शायद धीरे-धीरे आपकी प्रज्ञा जागती है और आपके अंदर यह समझ भी बढ़ती है कि क्या काम करना है और किस तरह से करना है, कितने उसमें करना है दायरे में। उसके बाद जब यह “सड़क-सड़क” गाया था, यह 2012/2013 में ही गा दिया था। उसके बाद अचानक फिर यह जो बाद में योगी जी और यह सब आए, तो उन्होंने क्या किया कि रिलीज़ करने का टाइमिंग। सबने अपनी फिल्में एक साथ रिलीज़ कर दी, तो ऐसा लगा और इस गायक ने चारों के लिए गा रखे हैं गाने। यह हुआ अलग-अलग टाइम का वो है प्रयोग।
मशहूर गायक और संगीतकार कैलाश खेर के साथ ‘आप की अदालत’ शो आज रात 10 बजे इंडिया टीवी पर प्रसारित होगा। इसका दोबारा प्रसारण रविवार को सुबह 10 बजे और रात 10 बजे होगा।
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